परिवार के सभी लोग इकट्ठे बैठे थे. ऐसा आज तक नहीं हुआ था
कि दादा-दादी और माँ-बाबूजी के साथ-साथ- दोनों चाचा भी मिलकर एक साथ बैठे हों. और तो और, तीन महीने के छोटे भाई को भी मां ने
अपनी छाती से लगाए- दुपट्टे से ढक रखा था. दादाजी जब-तब दबी ज़बान से कुछ
कहते जा रहे थे, और उसके बाबूजी तथा दोनों चाचे अपनी गरदनें हिलाते हुए सुन रहे थे.
बिब्बो दबे पाँव वहाँ से से निकल कर दूसरे कमरे में आ गयी. बार-बार खिड़की पर आ खड़ी होती बिब्बो को उधर
अपनी खिड़की पर आयी हुई सहेली ख़ाला की झलक मिली, तो झुट्पुटे के अन्धेरे में उसने ग़ौर से देखने के लिए आँखें
गड़ा दी. हाँ, वही थी, उसकी दाँत-काटी सहेली साफिया- जिसे बड़ी-बड़ी बातें कहने की वज़ह से गली के सारे बच्चे ‘ख़ाला’ कह कर बुलाते थे.
हालाँकि साफिया उम्र में उससे एक साल बड़ी थी, लेकिन दिखने में बिब्बो से दो साल छोटी लगती थी.
पिछले महीने साफिया को उसकी अम्मी ने कैसे फटकार लगाई थी- “मरजाणी को कबाब छोड़ कर कुछ भी अच्छा नहीं लगता. एक बिब्बो है- लड़की को देख के दिल खुश हो जाता
है. कौन समझेगा कि तू दस साल की हो गयी
है? एक कौर तक मुंह में गया नहीं, सुबह से
खेल में लगी है.” उसकी अम्मी न जाने और कब तक स्यापा करती रहतीं, अगर साफिया घर से बाहर नही भाग निकलती.
खाला को देखकर बिब्बो को लगा कि वह भी शायद उसे देखने ही
खिड़की पर आयी थी. उसने हाथ हिलाकर नीचे आने का इशारा किया तो ऊधर
से खाला ने भी हाथ हिलाकर ज़बाब दिया. दरवाज़े पर गयी तो देखा-
हफ्ता भर पहले दोनों चौखटों पर चढ़ाए गए लोहे के खाँचों मे लकड़ी का मोटा सा कुन्डा
लगा हुआ है. वह
सोचने लगी- ‘ख़ाला नीचे आ गयी होगी... कुछ देर तक इंतज़ार करेगी, फिर वापस चली जाएगी. वह भी तो चोरी-चोरी, छुप कर ही आयी होगी.’ उसने दुबारा नज़र डाली- ‘ज़ोर लगाने पर
कुन्डा हटाया तो जा सकता है.
रहा सवाल किसी के देख लेने या आवाज़ होने का, यह
ख़तरा तो उठाना ही होगा- खाला ने भी तो खतरा उठाया ही है.’
बिब्बो ने दरवाज़े के पल्ले को हल्का सा खोला. उसकी नज़र ख़ाला पर पड़ी जो इस तरफ ही देख रही थी.
बाहर आकर दरवाज़े के पल्ले को धीरे से बन्द किया और चारों ओर चौकनी निगाहों
से देखती, तेज-तेज चलती ख़ाला के पास आ गयी. दोनों सहेलियाँ ऐसे गले मिलीं, जैसे इससे पहले न कभी मिली थीं, न फिर कभी मिलना होगा!
“कैसी है तू, बिब्बो! मेरा तो दिल ही बैठा जा रहा है. यह क्या हो रहा है कि हर कोई एक-दूसरे की
जान का दुश्मन बना बैठा है.. सभी
भूल गए हैं कि कोई किसी का चाचा, तो कोई भाई या बहन है. मुझे तो बहुत डर लग रहा है, रब जाने क्या
होगा. छोड़, तू अपना हाल बता, क्या सचमुच तेरी फेमिली लाहौर छोड़ के...”
बिब्बो ने गरदन हिलाई- आँखों में उतर आए आंसू गालों पर
ढलकने को तैयार थे- “सभी बैठ कर खुसर-पुसर कर रहे हैं. तभी तो मुझे बाहर आने का मौक़ा मिला. खैर तेरा
क्या, तू यहीं रह जायेगी. मेरी कोई
भूल-चूक को दिल से न लगाए रखना. उस दिन मैंने तुझे थप्पड़ मार दिया था...”
“गलती तो मेरी ही थी, मै खामखा तेरी नाक के
पीछे...” ख़ाला ने अपनी सहेली का दिल हल्का करने की कोशिश की.
“अच्छा, मेरी बात सुन. तू कभी भी रात में अकेली मजीद वगैरह के घरों के आस-पास भी नहीं जायेगी.
मैंने अपनी आँखों से देखा था कि मजीद के चाचे ने फातिमा की बांह पकड़ कर उसे अंदर
घसीट लिया था. मुझे बेबे ने किसी को बताने
से मना कर रखा है , लेकिन तू तो मेरी जान से बढ़ के...”
अचानक सन्नाटे की छाती को चीरता कहीं पर कुछ शोर सा उठा.
किसी के गले से निकलती हड्डियों में उतर जाने वाली चीख सुनाई दी-
फिर वही मरघट वाली खामोशी वापस आ गयी. जो
कुछ भी हो रहा था- किसी के लिए बहुत था, तो किसी की खातिर इतना कम कि अभी भी तमाशा ज़ारी था.
उफ़्फ! न दिखाई देने वाली चीज़ों की खातिर, इनसान नज़र के सामने दिख रही इस जहान की बड़ी से बड़ी दौलत और
नेमत का वज़ूद मिटाने मे लग जाता है!
डरी-सहमी दोनो सहेलियों ने अपने-अपने तरीके से एक दूसरे को
भींच रखा था. बिब्बो ने नज़र दौड़ाई- ऐसा कभी नही होता था. मकानों के बाहर तो जैसे-तैसे
जितने भी बल्ब लगे थे, सभी जल रहे थे.
लेकिन ज़्यादातर घरों के अन्दर की रौशनियाँ जैसे जान-बूझ कर गुल की हुई थीं. किसी कुत्ते की मिमियाती सी आवाज़ फिज़ा मे
तैर गयी, बिब्बो
के मुँह से निकला-
“ओए, यह अपना शेरू नहीं था? मुझे
तो उसी की आवाज़ लगी... हाँ, वही है.” उसने हल्की सी पुचकार लगाई ‘शेरू’ दुम हिलाता पास आ खड़ा हुआ.
“पता नहीं, दो-तीन दिनों से किसी ने बिचारे के लिए कुछ डाला भी है कि
नहीं? भूखा होगा बिचारा. मै अभी आई,” कहती बिब्बो दबे पाँव, लेकिन तेज़ कदमों से चली गई. वापस आई
तो हाथ में दो-तीन रोटियाँ थीं.
सचमुच शेरू बहुत भूखा था, उनके देखते-देखते रोटियाँ चट कर गया.
“मै तो इसको अपने साथ ही ले जाउंगी. यहाँ बिचारे को कोई नहीं पूछेगा.” बिब्बो की बात सुनते ही खाला गुस्से से भर उठी- “तू कौन होती है इसे अपने साथ ले जाने वाली? यह इस गली का कुत्ता है. यह गली यहाँ रहेगी तो यह कुत्ता भी यहीं रहेगा. इसे कोई भी...”
“मै तो इसको अपने साथ ही ले जाउंगी. यहाँ बिचारे को कोई नहीं पूछेगा.” बिब्बो की बात सुनते ही खाला गुस्से से भर उठी- “तू कौन होती है इसे अपने साथ ले जाने वाली? यह इस गली का कुत्ता है. यह गली यहाँ रहेगी तो यह कुत्ता भी यहीं रहेगा. इसे कोई भी...”
“साफिया, तू तो अच्छी तरह से जानती है कि इसको गली में सिर्फ हमारे
घर से ही रोटी-सोटी मिलती है.”
“बस कर, हातमताई बनने की कोशिश न कर. अल्लाताला ने हमें इतना बख्शा है कि...”
“लेकिन उस दिन तो तू गली की
लड़कियों से खुद ही कह रही थी कि बिब्बो के घर से रोटी के टुकड़े मिलने बंद हो जाय
तो शेरू को पूछने वाला कोई भी नहीं.”
ख़ाला ने बात काटी दी- “कमाल है, तुझे नहीं पता- उस दिन सिमरन ने शेरू को लात मार दी थी? सिमरन से वैसे भी मेरी
कुट्टी है- तू जानती है. मुझे गुस्सा आना
ही था- तो मैंने सच्चाई बता दी थी. देखा नहीं था, सुन कर उसका मुंह सड़ने जैसा हो गया था. जो
कुत्ते को कभी रोटी नहीं डालता, उसे लात मारने का हक ... तू सीधी बात कर! फिज़ूल की बकवास कर के बात को ...”
बिब्बो ने सिर हिलाते हुए कहा- “शेरू तेरी डाली हुई रोटी को पूछेगा भी नहीं,
बिचारा भूखा मर जाएगा. आवाज़ मार के देख ले, वो तेरे पास आएगा ही नहीं.” बिब्बो की बात सुनने के बाद खाला
के पास अब आजमाने के सिवा और कोई चारा नहीं था. उसने नज़र दौड़ाई- कुत्ता सड़क के किनारे दोनों अगले पंजों पर मुँह टिकाए
लेटा हुआ था. उसने
गले मे चाशनी घोल कर धीमे, लेकिन साफ सुनाई देने वाली आवाज दी-
“शेरू... च्च् ...चूचू...शेरू...,” कुत्ते ने मुँह उठाकर देखा, फिर उसी अन्दाज़ मे लेट गया. खाला झेंप मिटाने के
अन्दाज़ में बोली- “अभी- अभी रोटी खाई है न, आराम कर रहा है.”
बिब्बो ने जैसे बात को अनसुनी करते हुए
जैसे ही आवाज़ दी, शेरू दौड़ा आ गया. ख़ाला को यह बड़ा नागवार ग़ुजरा और वह बारूद का
गोला हो गयी. पास ही पड़ी ईंट का टुकड़ा उठा कर इतनी जोर का
मारा कि शेरू तड़प कर दोहरा हो गया.
“हाए, तू तो अभी इसकी जान ले लेगी.... इस तरह मारा जाता है?
अब तो मुझे यकीन है कि अकेला पाकर तू इसका गला रेत देगी.” बिब्बो रूऑंसी हो कर
बोली तो ख़ाला का गुस्सा और बढ़ गया-
“काटा-काटी तो हिन्दू करते है, समझी?
अब्बू बता रहे थे कि मुराद अली की पूरी फैमिली का हिंदुओं
क़त्ल कर दिया है. हमारी कौम तो अमन पसन्द है, सभी हिन्दू फसादी होते हैं.” खाला जानती थी कि मुराद अली वाली बात
बिब्बो तो क्या, पूरी गली को पता था.
बिब्बो बोल पड़ी- “दौलतराम की बेटी के साथ... मुझे भी याद आ गया. शादीलाल और उसके भाई को ज़िन्दा
जला दिया है, दारजी बता रहे थे.”
ख़ाला बोली- “मैं पानी पीकर आती हूँ, मेरा गला सूख राघा
है,” और घर
के अन्दर चली गयी. सन्नाटे में अकेली बैठी बिब्बो का दिल काँप
उठा- ‘ख़ाला के अब्बाज़ान नायब दारोगा थे, कोई उल्टी-सीधी बात...’ इधर-उधर
चौकन्नी आँखों से देखती उठ खड़ी हुई. जैसे ही चलने के लिए कदम बढ़ाना चाहा, ख़ाला हाथ मे कोई चीज़ पकड़े आती दिखी. पास आकर बिब्बो को गुड़िया थमाते बोली-
“अच्छा हुआ, मुझे याद आ गया. उस दिन तू इसे
छोड़ आई थी, लुधियाने पहुँच कर कहेगी कि साफिया बेईमान है.” बिब्बो की जान मे जान आ
गयी, ‘ख़ामख़ा
अपनी सहेली पर शक किया.’ अचानक उसे भी कुछ याद आ गया-
“वाहे-गुरू मेहर करे, मै तो भूल ही गयी थी कि तेरे चार आने वापस करने हैं. मेरी चवन्नी
गुम हो गयी थी तो फीस के लिए...”
“हाए, सदक़े तेरी शराफत के!
मैंने तेरी साइकिल की घन्टी कहीं गुमा दी थी, वह नहीं याद तुझे? नमक की
पूरी बोरी छिड़क के बिछड़ने का ईरादा लग रहा है तेरा.” दोनों फिर आपस में लिपट गयीं और सुबकने लगीं. कुछ देर के बाद ख़ाला ने चुप्पी तोड़ी- “मैंने तेरी
गुड़िया तो दे दी, मगर तू दिन भर इसी के साथ मत चिपकी रहना- तेरी मैथ बहुत कमज़ोर
है. यहाँ तो मै किसी तरह तुझे पढ़ा देती थी,
रब जाने... मुझे तो बड़ी फ़िक्र हो रही है.”
बिब्बो जैसे होश मे आती बोली- “बहुत देर हो गयी, किसी को
पता चल गया तो? तू जानती है कि मेरा बाहर निकलना...”
खाला बोली- “मै भी
भूल गयी थी... मै भी चलती हूँ.”
बिब्बो बोली- “जा रही है, तो शेरू के बारे में कोई फैसला
करती जा.” सुनते ही ख़ाला के नथूने
फूलने-पिचकने लगे- “कुत्ते का ख्याल दिल से निकाल दे. गली का कुत्ता गली में ही
रहेगा, किसी के साथ- कहीं भी नहीं जाएगा. ज़िद पर आयेगी तो मै अभी इसे सामने के कुएं में
धकेल दूंगी.”
“ले, आ गयी न औकात पर?
यह तेरा असली चेहरा है. अरे, हिन्दू जिससे मुहब्बत करते हैं, उसके लिए अपनी
जान भी कुरबान कर देते है. मैं तेरी जगह
होती तो कहती कि शेरू कि मै खातिर अपनी जान भी कुरबान...”
खाला गुस्से में खड़ी हो गयी- “तू मुझसे ज़्यादा कलेज़ा रखती
है? मै भी जान की परवाह नहीं करती. आजमाने की बात है, तो यह ले!”
बिब्बो को खयाल तक नहीं था कि ख़ाला के मन में क्या है! जब कुएं से खाला के नीचे गिरने की आवाज़ आयी, तो उसका दिमाग़ सुन्न हो गया- ‘वाहे गुरू, उसने अपनी सहेली की जान ले ली...’
अगले ही पल बिब्बो भी कुएं के अन्दर थी!
और, गली का कुत्ता इतना बे-ग़ैरत नहीं था- कुएं की मेड़ पर आकर अन्दर झांकने की
कोशिश में लगा था.
***
निःसंदेह एक सुन्दर कहानी (नई प्रस्तुति लिपट कर ....और नव वामा ...)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं• Loveable line ........अचानक सन्नाटे की छाती को चीरता कहीं पर कुछ शोर सा उठा. किसी के गले से निकलती हड्डियों में उतर जाने वाली चीख सुनाई दी- फिर वही मरघट वाली खामोशी वापस आ गयी. जो कुछ भी हो रहा था- किसी के लिए बहुत था, तो किसी की खातिर इतना कम कि अभी भी तमाशा ज़ारी था. उफ़्फ! न दिखाई देने वाली चीज़ों की खातिर, इनसान नज़र के सामने दिख रही इस जहान की बड़ी से बड़ी दौलत और नेमत का वज़ूद मिटाने मे लग जाता है!...
जवाब देंहटाएंगली का कुत्ता इतना बे-ग़ैरत नहीं था- कुएं की मेड़ पर आकर अन्दर झांकने की कोशिश में लगा था.
गली का कुत्ता- would be a comman mango man... निःसंदेह एक सुन्दर कहानी
Speachless… ... the above line is so strong / refreshing that it is clearing up the whole story.