उस दिन मेरा मन बहुत उदास था.
हाँलाकि मेरा मित्र राजेश एक जानी-मानी एयरलाईन कम्पनी में डिप्टी मार्केटिंग
ऑफिसर बन गया था और मुझे पत्नी के साथ गोवा आने-जाने का हवाई टिकट गिफ्ट में देने
के लिए कई बार फोन कर चुका था, पर उदासी ज्यों कि त्यों बनी-ठनी रही. राजेश का क्या है- सेल
प्रोमोशन की खातिर उसे मिले अन्य अधिकारों में यह 'ऑफर' वाली बात भी शामिल रही होगी, अन्यथा वह मुझे अपनी ज़ेब से गोवा तो क्या- करोलबाग से कड़कड़डूमा तक
भेजने की स्थिति मे नहीं था. जब उसने मुझसे फोन पर पूछा था कि मेरी ‘मैरेज एनिवर्सरी’ कब है, क्योंकि वह गिफ्ट के रूप मे गोवा का सपत्नीक रिटर्न एयर-टिकट देना
चाहता है- तो सुन कर मेरी बोलती बन्द हो गई. इसके कारण दो थे. एक तो यह पहले से ही गृहस्थ जीवन में लगातार
थर्ड-डिग्री झेल रहे मुझ जैसे लाचार आदमी को सबकी नजरों से ओझल करने का प्रोपोजल
था- जहाँ उसकी
चीख-पुकार तक सुनने वाला कोई न हो. दूसरा- बुरे क्षणों को भूल जाने में भलाई की
तर्ज पर- मैं अपने विवाह की तिथि आदि सब भुला चुका कर कुछ हद तक सुकून से जी
रहा था. मैं राजेश से भला अब कौन सी तारीख बताता? उसका प्रपोजल सुनकर चोर-दरवाजे से एक विचार अवश्य मन में उपजा कि यह एक
हवाई-सफर का ऑफर है, कोई भी तारीख बता कर टिकट ले लूं. लेकिन, पहले
वाले कारण ने इसमें फँसड़ी मार दी, मै किसी अनजाने स्थान पर जाने के विचार-मात्र से आतंकित हो गया (जहाँ
बीच-बचाव या दखल देने वाला कोई न हो) और फोन का रिसीवर रख कर हथेली का पसीना
पोंछने लग गया.
उदास मन लिए ही घर आया और जैसे ही
टी.वी. ऑन किया, कोई
विज्ञापन चलता दिखा. एक अंग्रेज
साहब के होंठ किसी अलग अन्दाज में हिलते परन्तु- शब्द कुछ और ही
सुनाई देने की बात पर मै चकित रह गया. उदाहरण के लिए- यदि उनके होंठ ‘मोजाम्बिक’ शब्द का उच्चारण करते लग रह रहे थे, तो कानों से ‘लुधियाना’
सुना जा रहा था. आज तक तो मैंने यही मुहावरा सुना था कि- “लुकिंग लन्दन, गोर्इंग टोकियो.” परन्तु, “'बोले- बबुआ, सुने- चुड़ैल” जैसी किसी बात या
मुहावरे से सर्वथा अनजान था. उन साहबजी के हिल रहे
होठों और कानों को सुनाई दे रहे शब्दों में कोई ताल-मेल बिठाना संभव नहीं था.
सुनायी दे रही बातें अच्छी लगीं तो मै तनिक और रुचि लेकर सुनने लगा.
दिलचस्पी से सुने जाने वाले शब्द मर्मस्पर्शी से लगने लगे-
“... प्रोफेसर स्लो मोशन द्वारा लेबोरेटरी में की गई वर्षो की मेहनत और
रिसर्च का नतीज़ा है हमारा प्रॉडक्ट ‘मेगा-मेमोरी’ ... यह आपके जीने का तरीका बदल देगा, एकदम सच! आप जान भी नहीं पाएंगे कि आपकी थकी-पिटी दुनिया कब और कैसे
एक सुहाने सफर में तब्दील हो गई है. बच्चे-बूढ़े, औरत-मर्द या मोटे-पतले सभी पर एक जैसा असर करता है, बिलकुल सच! क्या कहा, आपको यकीन नहीं हो रहा?... हम जानते थे
इसलिए हमने स्टूडियो में मिसेज बाल्टीवाला को ...''
देखते ही देखते टी.वी. पर एक मेम
होंठ हिलाने लगी- “मेरी मेमोरी बहुत
खराब थी, मेरी सभी
सहेलियाँ मेरा मज़ाक उड़ाती थीं... हा हा हा ... मेरे पति आठ-आठ दिन घर पर नहीं आते थे, किन्तु मुझे याद ही नहीं आता था कि मेरी शादी को तेरह साल हो चुके
हैं... हॉ हॉ हॉ! लेकिन, जबसे मैने ‘मेगा-मेमोरी’
का इस्तेमाल शुरू किया तबसे मेरी दुनिया ही बदल गई है.
प्रफेसर स्लोमोशन का अविष्कार हैरान कर देने वाला है. बाय गॉड, अब मुझे अपना, अपने पति का नाम-पता से
लेकर- उसे किस-किस के फोन आते हैं, सब कुछ याद रहता है. क्यों, है न मज़ेदार? हा हा हा! इस क्रीम के
इस्तेमाल से अनचाहे बाल ...”
अचानक कैमरा घूम कर पहले वाले
साहब पर चला गया- “ ओह... यह
लाईन इस प्रोड्क्ट की नहीं थी, आप बहुत मजाकिया हो गयी
हैं... नेवर माईंड. थैन्क यू रूबीना. सुना आपने
दोस्तों? जी हाँ, हमारा
प्रॉडक्ट है ही बेमिसाल! यह लेबोरेटरी में टेस्ट किया गया और एक सर्टिफाइड
प्रोड्क्ट है. अगर आप पन्द्रह दिनों के भीतर इसके रिजल्ट से सन्तुष्ट नहीं होते
हैं, तो आप
यकीन कीजिए कि आप का पूरा पैसा वापस कर दिया जाएगा. हम आपको पैसे वापस करने की गारंटी देते हैं... फिर देर किस बात की? उठाइए फोन और स्क्रीन पर लिखे बाईस नम्बरों मे से कोई एक...''
मैंने आवाज़ को बंद कर दिया और
सोचने लगा कि यूरोपियनों का इसी बात मे तो सानी नहीं, डंके की चोट पर बिजनेस करना जानते हैं! दावा कर रहे हैं कि
पैसे वापस कर देंगे! अजी साहब, अगर इस ‘मेगा-मेमोरी’
ने अपना असर नहीं किया तब किसी
असन्तुष्ट ग्राहक को कोई बात ही कहाँ याद रहेगी कि वह पैसे वापस माँगेगा! अचानक
मुझे अपने नौकर रामलुभावन की याद आ गई. बहुत दिनों से
उसकी भूल जाने वाली बीमारी मुझे नचाए जा रही थी. किसी रविवार के दिन मैं उससे कहता
कि पड़ोस मे रहने वाले गुप्ताजी को रम्मी खेलने के लिए बुला दे, तो वह रसोई में जाकर श्रीमतिजी से कह आता कि बाबूजी के पेट मे दर्द
है, आज कुछ
नहीं खाएंगे. रात को डिनर नदारद पाकर- उससे सफाई माँगे जाने पर अपने पेट पर हाथ
फिराता हुआ कह देता कि उसके पेट में दर्द है, उसे कहा-सुना कुछ भी याद नहीं! इसी तरह यदि मैं कभी कहता कि एडवोकेट मिश्राजी को आज लन्च पर आने का
इन्विटेशन दे दे तो वह जाकर सेशन-जज गोयल साहब से कह आता कि हमारे बाबूजी आज रात
का डिनर आपके घर करेंगे. फलस्वरूप, इधर मैं दिन के साढ़े-तीन बजे तक एडवोकेट साहब के अपने घर पर आने की
प्रतीक्षा करता रहता तो उधर, बिचारे थके-मांदे जज साहब रात के साढ़े-बारह बजे तक मेरी बाट
जोहते-जोहते अपने डिनर-टेबल पर भूखे ही सो जाते. हमारे घर की दिनचर्या में सेंध लग
गई थी. मानसिक स्वास्थ्य-लाभ को ध्यान में रख कर एक-दो बार उसे छुट्टी करके घर
जाने के लिए उत्साहित करना चाहा तो उत्तर मिला- “हमें अपने देस-गाँव अऊर महतारी-बाप का कवनो ईयाद नाहीं. मालिक, हम जार्इं त जार्इं कहाँ?” फिलहाल- मैं इतना दुखी था कि “रिस्क”
उठाने को तत्पर हो गया और एक जुआरी की सी मानसिकता बनाते हुए
‘मेगा-मेमोरी’ का ऑर्डर दे दिया (असर न होने पर पैसे की वापसी के लिए मेरी मेमोरी काम आ
ही जाती).
ऑर्डर देने के चौथे दिन ही कुरियर
से डिलीवरी मिल गयी तो एडवांस में भेजे गए 3,990/- रुपयों के लिए सोच में पड़ा डाँवाडोल मन आश्वस्त हुआ. खुशी भी हुई कि
डिलीवरी जब इतनी ‘फास्ट’ है तो असर भी कुछ-न-कुछ
ठीक ही होना चाहिए. मैने उसी समय रामलुभावन को बुलाया
और बताए गए निर्देश के अनुसार दिन में दो बार एक-एक कैप्सूल खाने के लिए समझा
दिया. एक सप्ताह बीतने के बाद मैने ध्यान दिया तो पाया
कि दवाई का असर उल्टा ही हो रहा है- राम लुभावन और कष्ट-दायी हो चला है!
कभी पानी का गिलास मुझे देने की बजाय उसे टी.वी.पर रख कर ‘कार्टून चैनल’ देखने लगता अथवा अखबार माँगने पर कार की धुलाई करने चल देता है.
मैने उसे बुलाकर पूछा कि अब तक कितने कैपसूल खाए हैं, तो उत्तर देने के स्थान पर मुँह फाड़ कर दाएं-बाएं देखने लगा. कुछ और कहना-पूछना मुझे मुनासिब नहीं लगा और
जाकर उसके कमरे की तलाशी लेने लगा. मैंने पाया कि कि
कैप्सूल की शीशी को उसने अपने बैग में रखी हुई धोती के सिरे में गाँठ लगा कर रख
दिया है. ढक्कन खोलने पर शीशी ज्यों की त्यों भरी
मिली. मन में आये गुस्से का स्थान सहानुभूति ने लिया, रामलुभावन
बिचारा- मेमोरी का मारा जो था. अपने भारी निवेश और गम्भीर
स्थिति को देखते हुए मैंने कैपसूलों को अपने सामने खिलाने का निश्चय कर लिया.
प्रो. स्लोमोशन का प्रॉडक्ट इतना ‘फास्टमोशन’ हो सकता है, यह मेरी कल्पना से बाहर की बात निकली. तीसरे-चौथे दिन के बाद से वह ठीक-ठाक पानी और अखबार देने लगा. ग्यारहवें
दिन के प्रातःकाल ही हमें जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई दी, जो रामलुभावन के कमरे से आ रही थी. हम पति-पत्नी दोनों दौड़े गए. हमारे आने की आहट सुन, रामलुभावन ने मुँह पर रखे गमछे को हटाया और रूलाई को दहाड़ों मे
परिवर्तित कर दिया- “आरे मोरे मईया, हमका बिदेसवा लूटेला हो ठगवा... हाय रे हमरे बपऊ, अपने लरिकवा गईलऽऽ बिसराय. आंय हा हा हा !” वह पुनः गमछे से मुँह ढककर, अपने पैरों को किसी बच्चे की तरह पटकने लगा.
पैंतालीस साल के हट्ठे-कट्ठे, कच्ची-घानी सरसों तेल-पिलाई के बल पर मरोड़ी-मोड़ी मूंछों के मालिक-
रामलुभावन का रूदन-क्रन्दन उतना ही बेमेल लग रहा था जैसे पूर्व राष्ट्र-पति
मुशरर्फ की वह मुस्कान- जो ‘हमारा मुल्क
दहशतगर्दी के खिलाफ है’, कहने के बाद उभरती थी.
संक्षेप में- उसने हिचकियों के बीच बताया कि पूरे तीने साल, दो महीने और छब्बीस दिन हो गए हैं उसे अपना घर देखे. पता नहीं उसके घर का अब क्या हाल है? छोटे भाई का लगन हुआ कि नहीं, गड़हवा वाले खेत का मुकदिमा जीते कि हार गए, बड़की बहिन का घर से भागा देवर आपस आया कि नहीं... आदि. मुझे
दया के साथ उस पर खीझ भी आयी तो मैने उसके घर से अब तक आई- उसीके बैग में रखी सभी
चिट्ठियों का पुलिन्दा उसके सामने दे मारा. रामलुभावन अगले पाँच घन्टे तक तनमन्यता
से चिट्ठियों को पढ़ता रहा और पानी पीता रहा.
मैं रात को सोने की तैयारी कर रहा
था कि रामलुभावन आया और मुझसे सौ– डेढ़ सौ
सादे काग़ज के साथ एक कलम की माँग की. मुझे उसकी अक़्ल
पर तरस आया- अब बिचारा एक-एक पत्र का उत्तर लिखेगा, भले ही सुबह हो जाए! उसे काग़ज-कलम देकर मै सो गया. सवेरे उठा तो
पाया कि चाय के साथ काग़जों का एक भारी पुलिन्दा भी रखा है. खोल कर देखने पर
पता चला- रात में रामलुभावन ने काग़ज-कलम तो हिसाब लिखने के लिए माँगा था.
अड़सठ पन्नों पर तीन साल ग्यारह महीने से लेकर कल तक किए गए
बाज़ार-खरीद का हिसाब लिखा था, पूरी तफसील से. तेरह
मार्च को जिस सब्जी वाले से नौ किलो मूली ली गयी थी उसके पास पैंतीस पैसे बाकी रह
गए थे और अगले दिन वह अपने गाँव चला गया था. यह पैंतीस पैसे पैसे अलग जोड़े
गए थे. इसी तरह दो रुपये का फटा नोट जिस किरानेवाले वाले ने दिया था, वह दूसरे दिन साफ़ मुकर गया था कि
उसकी दूकान से ऐसा नोट मिला होगा. एक दिलचस्प बात यह लिखी थी कि होली से एक
दिन पहले, जो दो रूपये हिसाब में ज्यादा बच रहे थे और उस समय
पता नहीं चल पाया था- वह अब याद आ गया है. जिस सब्जी वाले से धनिया ली थी
उसे पैसे देना भूल गया था. पूरे हिसाब के
अनुसार- लिए गए थे 87,742/- और बाकी बचे थे 2,913/- रुपए. अन्त में लिखा था कि 107/- रुपए अभी दुकानदारों से लेने थे. अलग से तीन पन्नों पर बकाया
तनख़्वाह और बोनस का हिसाब था, जो उसके हिसाब से 14,688/- रुपए बनता था. सारा
हिसाब पढ़कर मुझे तो लॉटरी लगने जैसी खुशी हुई और मैने उसी समय पन्द्रह हजार का ‘बियरर चेक’ काट कर रामलुभावन को दे डाला. यह भी कह
दिया कि सौदा-सुलफ वाले बकाया रुपए भी वही रख ले. मुझे ‘मेगा-मेमोरी’ बनाने वालों के स्टुडियो
का पता होता तो उसी समय कोट-पैन्ट पहन, नीली टाई बाँध कर- उनके किसी एपिसोड में ‘ईश्वर की सौगन्ध’ खाने रवाना हो जाता, बिल्कुल सच!
(वैधानिक खुलासा- मुझे किसी भी देसी-विदेशी, दवा-दारू कम्पनी का स्टॉकिस्ट/एजेन्ट/भीतर-घाती आदि- कुछ भी न समझा जाय. इस
आलेख की घटनाएं कोरी कल्पना हैं और इनका सम्बन्ध मेरे समेत- किसी भी जीवित अथवा
मृत प्राणी/जानवर से नहीं है. मैं ईश्वर की सौगन्ध खाकर घोषणा करता हूं मैने अपनी
चेतन/अचेतन अवस्था में किसी रामलुभावन को देखा तक नहीं, न ही मेरी औक़ात किसी नौकर-चाकर को रखने की है.)
अपने साले साहब का वर्तमान निवास
मात्र तीन रेलवे-स्टेशन की दूरी पर है, सो पिछले सात सालों से- प्रत्येक महीने के अन्तिम सप्ताह में प्यारी
बहन के घर आने का टिकट कटा (गारन्टी से
नहीं कह सकता) लेते थे. उनके आने पर जब तक
रामलुभावन उनके तीन-चार जोड़ी कपड़े धोता था, तब तक साले साहब की बहनजी चार-पाँच पकवान तैयार कर लेती थीं.
राम लुभावन की मेमोरी-मेगा होने बाद- जब एक दिन बाहर किसी ऑटो के रूकने की
आवाज आई तो घर के सभी लोगों ने साले साहब का आगमन जान लिया. उनकी बहना बाहर निकल
गई. जब साले साहब ने किराया देने लिए प्यारी बहन
से सौ रुपए का छुट्टा मांगा, तो खिड़की से ताक लगा कर देखता
रामलुभावन दौड़ा आया और बोला- “अरे दिनेस बाबू, ई आज का भिजिट तीस के
ऊपर सातवाँ हैं, लेकिन आप छुट्टा तो कभी लेकर आए ही नहीं. एगारह बार तो केहू न
केहू आपका साथी था, ऑटो का
किराया उसी ने दिया. आपकी आज की भूल बीस के ऊपर छठवीं बार है. अब
हमारी आददास्त के साथ तनखाह भी बढ़ गई है, लीजिए- हम ही देते हैं बियालीस रूपए.”
उस दिन मुझे पता चला कि रहते-सहते
घर के नौकर का स्थान रिश्तेदारों से भी ऊपर चला जाता है, यदि किसी काम आने की बात जोड़ दी जाय तो. अब तो 'मेगा-मेमोरी' के केप्सूलों में
किये निवेश का कई गुना वापस आ चुका है (फिर से वैधानिक चेतावनी). तीन छतरियॉ, ग्यारह कटोरियाँ, दो कम्बल, चार पतीले और आठ चम्मच के साथ- एक ट्रे और एक हैन्ड-मिक्सर की भी घर में वापसी हो चुकी है. सोलह बार चीनी, नौ बार बेसन और चार बार नमक ले जानी वाली मिसेज घटगे ने कम से
कम खाली कटोरी तो लौटा ही दी है. अक्सर कार की उधारी करने वाले मिस्टर
सक्सेना को भी पता चल चुका है कि उनकी कार में तेरह बार प्रॉबलम हो चुकी है.
अपने काम-से-काम रखने की नीति का
पालन करते हुए- मैंने किसी भी अपने-पराए को “मेगा-मेमोरी” के विषय में नहीं बताया था. लेकिन, अपनी हाउसिंग-सोसाएटी की “माताहारी”
मिसेज चूनावाला ने न जाने किस सूत्र से सारी बात का पता कर लिया.
सियार तो ठीक है, परन्तु लोमड़ी वाली चतुराई उन्ही पर उल्टी पड़ गई है. वे अपने पति को “गिनी-पिग”
मानते हुए- धैर्य-पूर्वक मेगा-मेमोरी के
कैप्सूलों को दाल-सब्जी डाल में कर खिलाए जा रही थीं. पिछले
महीने की 10 तारीख को मिस्टर चूनावाला की ‘मेमोरी
मेगा’ हो गई. बस, फिर क्या- उन्हें अग्निकुण्ड के समक्ष फेरे लेते हुए सातों खाए/खिलाए
वचन याद आ गए, फलस्वरूप
पत्नी को तलाक का नोटिस भिजवा दिया है.
और... और कुछ याद नहीं आता!
*****
इसी तरह यदि मैं कभी कहता कि एडवोकेट मिश्राजी को आज लन्च पर आने का इन्विटेशन दे दे तो वह जाकर सेशन-जज गोयल साहब से कह आता कि हमारे बाबूजी आज रात का डिनर आपके घर करेंगे. फलस्वरूप, इधर मैं दिन के साढ़े-तीन बजे तक एडवोकेट साहब के अपने घर पर आने की प्रतीक्षा करता रहता तो उधर, बिचारे थके-मांदे जज साहब रात के साढ़े-बारह बजे तक मेरी बाट जोहते-जोहते अपने डिनर-टेबल पर भूखे ही सो जाते........bahut ki rochak hai.....apke rachanao me " sence of humour" jhalakti hai jo pathko ko achi lagti hai.....awesome..bahut achi hai...
जवाब देंहटाएंHilarious like always...
जवाब देंहटाएं-Arvind K.Pandey
http://indowaves.wordpress.com/
“क्या ‘लकड़-पान’ लगाया है तुमने, पूरी जीभ का सत्यानाश हो गया ..best line in LAKKAD BILLA. Good one !
जवाब देंहटाएंgahra vyangya
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
मेगा-मेमोरी का चमत्कार पढ़कर मजा आ गया ....
जवाब देंहटाएंआपके स्वागत के इंतज़ार में ...
स्याही के बूटे